02

शादी या सौदा??

आगे।

पंडित मंत्र पढ़ता रहा...लेकिन उन संस्कृत के शब्दों में जीवन नहीं था—बस रस्मों का बोझ था।

सांवि ने अपनी आँखें उठाईं।

धीरे से... एक डर, एक भरोसा, और एक अविश्वास के साथ।

पिता की ओर देखा। उनकी आँखें अब भी नीचे थीं।

शायद उनके पास कोई उत्तर नहीं था।या फिर हिम्मत नहीं थी अपनी बेटी की नज़रों में देखने की।

लेकिन जो भी था—उसने बोलना नहीं चुना।

और उस चुप्पी ने जो किया...शब्द भी वैसा ज़ख्म नहीं दे सकते।

सांवि ने अपनी हथेली नहीं खींची...उसने कोई विरोध नहीं किया।

क्योंकि जिस लड़की के सवाल का जवाब न मिले,वो चुप रहना सीख जाती है।

लेकिन उस चुप्पी में जो चीख थी, वो ज़िंदगी भर गूंजती है।

उस दिन मंडप में कन्यादान नहीं हुआ...उस दिन एक बेटी ने अपने पिता को खो दिया।

पंडित जी आगे समझाते हुए कहते हैं: कन्यादान —

एक पवित्र परंपरा, जिसमें पिता अपनी बेटी को, अपनी आत्मा के अंश को,विश्वास के साथ उस व्यक्ति को सौंपता है

जिसे वह योग्य समझता है उसकी रक्षा, उसका सम्मान और उसका साथ निभाने के लिए।

“दान” —ना कि त्याग या सौदा, बल्कि सम्मानपूर्वक अर्पण — जैसे कोई दीपक अग्नि को सौंपता है,कि अब इसे बुझने मत देना।

पर आज...मंडप में जो हुआ, वो उस "दान" से बहुत दूर था।

सांवि ने अपने पिता को देखा, और वो एक सवाल उसकी आँखों में जम गया—"क्या ये वाकई कन्यादान था... या सिर्फ़ सौदा?"

जिस हथेली को आर्यन के हाथों में सौंपा गया था,

वो न तो स्नेह से भरी थी, न आशीर्वाद से।

वो कांप रही थी —जैसे किसी बोझ को जबरन धकेला जा रहा हो।

सांवि की आँखों से बहते शब्दों को सिर्फ़ एक इंसान ने पढ़ा — आर्यन।

वो अपनी जगह शांत बैठा था, लेकिन उसकी उंगलियाँ कस गई थीं।

उसके मन में भी कुछ हिला था।

क्योंकि उसने सांवि की आँखों में एक नमी देखी जो दुल्हन की नहीं थी—वो नमी थी किसी बंधक की।

आर्यन ने सांवि के हाथ को पकड़ते वक़्त अपने होठों से कोई रस्म नहीं दोहराई...

He is only one who understand how savi feel inside among everyone who mybe describe them as her family and friends....even he decided to get married with rival daughter.....

अब अग्नि के चारों ओर फेरे लेने की बारी थी।

गांठ बाँधी गई—एक रिश्ता बाँधा गया, जिसमें सिर्फ़ शरीर बँधे, आत्माएँ नहीं।

सांवि और आर्यन ने सात फेरे लिए।

हर फेरे में एक वचन, एक परछाई की तरह—

लेकिन जहाँ आर्यन के लिए ये सिर्फ़ रस्में थीं,वहीं सांवि के लिए हर फेरा उसके भीतर उसको तोड़ रहा था।

To be continued.....

Write a comment ...

Write a comment ...