
गाने का आखिरी सुर खत्म होते ही स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लड़कियाँ चीख रही थीं, "अद्वीर, वी लव यू!❤️" उसने हल्की-सी मुस्कान दी, लेकिन उसका मन अब भी कहीं और था। वह गाने में खोया था, संगीत में डूबा हुआ... जैसे वह इस भीड़ के शोर के बावजूद कहीं अकेला खड़ा था।
"अद्वीर! अद्वीर! अद्वीर!" पूरा स्टेडियम अब भी उनके नाम से गूंज रहा था।
लेकिन अद्वीर, जो अभी-अभी एक जादुई परफॉर्मेंस देकर लौटा था, अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था।
"भाई, क्या परफॉर्मेंस थी! पूरा सोशल मीडिया तुम्हारे ही नाम से भरा पड़ा है!" उसके मैनेजर, आर्यन ने एक्साइटमेंट से कहा। अद्वीर ने हल्की-सी मुस्कान दी और बिना कुछ कहे अपनी जैकेट उतारकर रख दी। वह आईने के सामने खड़ा था, जहाँ उसकी खुद की ही थकी हुई आँखें उसे देख रही थीं। "क्या हुआ? आज फिर वही अजीब एहसास?" आर्यन उसे कई सालों से जानता था। वह जानता था कि जितना यह लड़का लोगों की भीड़ में घिरा हुआ लगता है, असल में वह उतना ही अकेला है। अद्वीर ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस अपनी उंगलियाँ अपने गले पर फेरीं, जहाँ रुद्राक्ष का पेंडेंट था। "पता नहीं क्यों, जब भी मैं गाता हूँ, मुझे ऐसा लगता है कि कोई कहीं मुझे सुन रहा है... कोई ऐसा, जो मेरे हर सुर को महसूस कर सकता है..." आर्यन ने उसकी बात पर हंसने की कोशिश की, "भाई, वो कोई नहीं, तुम्हारे लाखों फैंस हैं! तुम जिस भी शहर में जाओ, वहाँ तुम्हें चाहने वालों की कमी नहीं!" "शायद..." अद्वीर ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में वही गहरी बेचैनी थी।
अद्वीर अपनी ब्लैक स्पोर्ट्स कार में बैठा और ड्राइवर को होटल ले चलने के लिए कहा। लेकिन जैसे ही कार मुंबई की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर आगे बढ़ी, वह खिड़की से बाहर देखने लगा। रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे, लेकिन शहर अब भी जाग रहा था। सड़कों पर जलती पीली रोशनी, ठेले पर चाय पीते लोग, ऑटो में बैठी हंसती लड़कियाँ... यह सब देखकर उसे महसूस हुआ कि भले ही पूरा शहर ज़िंदा है, लेकिन उसके अंदर कुछ अधूरा है। "अकेलापन, जिसे कोई समझ नहीं सकता" "सर, होटल आ गया।" ड्राइवर की आवाज़ ने उसकी सोच तोड़ी। अद्वीर ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकला। होटल के बाहर प्रेस और पैपराजी पहले से खड़ी थी। "अद्वीर, शो के बारे में क्या कहना चाहेंगे?" "सर, आपकी अगली एल्बम कब आ रही है?" "क्या यह सच है कि आप किसी को डेट कर रहे हैं?" सवालों की झड़ी लग चुकी थी, लेकिन अद्वीर ने सिर्फ एक हल्की मुस्कान दी और बिना कुछ कहे अंदर चला गया।
कमरा नंबर 2307 – जहाँ सिर्फ सन्नाटा था होटल के इस कमरे में कोई तड़क-भड़क नहीं थी। न महंगी शराब की बोतलें, न पार्टी करने वाले दोस्त। बस, एक बड़ा-सा कमरा, जहाँ कोने में रखा पियानो ही उसकी असली कंपनी थी। उसने अपनी शर्ट के बटन खोले, मिरर के सामने खड़ा हुआ, और खुद को देखा। "तू सच में खुश है, अद्वीर?" कोई जवाब नहीं था।
अद्वीर ने पियानो के सामने बैठकर अपनी उंगलियाँ हल्के-हल्के कीज़ पर फेरनी शुरू कीं। एक पुरानी धुन उसके दिमाग में घूम रही थी— वही धुन, जो उसने सपने में सुनी थी। लेकिन यह धुन कहां से आई? किसने उसे गुनगुनाया था? उसे खुद नहीं पता था, पर जब भी वह इसे बजाता, उसे ऐसा लगता कि वह किसी भूली-बिसरी याद से जुड़ रहा है... किसी ऐसे पल से, जो उसका था, पर जिसे वह पहचान नहीं पा रहा था।
अद्वीर पियानो पर अपनी उंगलियाँ फेर रहा था जब फोन की स्क्रीन पर ‘माँ’ का नाम चमका। उसके होंठों पर एक अनजानी मुस्कान आ गई। उसने फौरन कॉल रिसीव की। "अरे रॉकस्टार! आज तुम्हारा शो था ना? कैसा रहा?" फोन के दूसरी तरफ उसकी माँ, अदिती जी, की खुशमिजाज आवाज़ गूँजी।
"माँ, प्लीज! हर बार ये ‘रॉकस्टार’ मत कहा करो!" अद्वीर ने हँसते हुए कहा। "तो और क्या कहूँ? मेरा बेटा तो पूरे देश का स्टार बन चुका है!" "लेकिन तुम्हारे लिए वही छोटा अद्वीर हूँ, जो स्कूल जाने से पहले टाई पहनने में रोता था, और दादू के बिना खाना नहीं खाता था।" "बिलकुल! वैसे, तुम्हारे दादू का फोन आ रहा था मुझसे थोड़ी देर पहले। कह रहे थे कि तुम्हें कॉल करू, वर्ना तुम भूल ही जाओगे कि तुम्हारा घर भी है!" अद्वीर ने तुरंत सीधा होकर फोन कान से लगाया, "अरे! मैं कब भूला हूँ?" "हाँ-हाँ, ज़रूर! एक हफ्ते से बस टेक्स्ट पर 'I am busy, talk later' ही भेज रहे थे!" अद्वीर ने शरारती अंदाज में हँसते हुए कहा, "माँ, आप मेरी स्पाई हो क्या? हर बात पर रिपोर्ट कार्ड तैयार रखती हो!" "बिलकुल! और अब तुम्हारे दादू से बात करो!"
"बच्चू!!" फोन के दूसरी तरफ से एक भारी, मज़बूत और अपनापन भरी आवाज़ आई। अद्वीर की आँखें चमक उठीं, "दादू!" "कैसा है मेरा हीरो?" "आपके हीरो को बहुत भूख लगी है, लेकिन होटल का खाना पसंद नहीं आ रहा!" अद्वीर ने नाटकीय अंदाज़ में कहा। "अरे, तू वहाँ होटल में पड़ा रहता है, यहाँ आ जा! मैं तुझे आलू के परांठे बना कर खिलाऊँगा!" "सच्ची? लेकिन परांठे बनाओगे कैसे? डॉक्टर ने तुम्हें ज़्यादा ऑयली चीज़ें मना की हैं ना!" "ओहो! अब तू मुझे मेरी ही सेहत पर ज्ञान देगा?" अद्वीर ज़ोर से हँस पड़ा, "बिलकुल! वैसे भी, मेरे बिना आपका मन लगता भी कहाँ है?" दादू ने हल्की हँसी भरी और कहा, "तेरी ये नटखट बातें मुझे तेरे बचपन की याद दिलाती हैं, जब तू मुझसे कहता था कि बड़ा होकर सुपरमैन बनेगा!" "तो क्या! अब भी सुपरमैन हूँ! देखो ना, पूरे स्टेडियम में लोग मुझे उड़ते हुए देखने आते हैं!" "हाहाहा! हाँ, लेकिन पहले भीड़ से बचने के लिए मुझसे छिपकर भागता था, अब भी भागता ही रहता है!" अद्वीर मुस्कुरा दिया। दादू हमेशा उसकी हर मुश्किल को हल्के मज़ाक में बदल देते थे। "याद है, जब मैं छोटा था और आपने मुझे पहली बार किशोर कुमार के गाने सुनाए थे?" "अरे! तुझे तो बस ‘मेरे सपनों की रानी’ ही पसंद था! फिर जब भी बारिश होती थी, तू छत पर खड़ा होकर गाने लगता था!" "और माँ डर जाती थी कि कहीं फिसल न जाऊँ!" अद्वीर हँसते हुए बोला। "तेरी माँ तब भी तुझसे ज़्यादा घबराई रहती थी, अब भी रहती है!" "अरे नहीं, अब मैं बड़ा हो गया हूँ!" "बड़ा हो गया है, लेकिन अभी भी मुझसे बिना बात किए सो नहीं सकता!" दादू ने प्यार से कहा। अद्वीर ने गहरी सांस ली। सच ही तो था। दुनिया के सामने वह कितना ही बड़ा स्टार क्यों न हो, लेकिन माँ और दादू के सामने वह अब भी वही मासूम बच्चा था, जिसे बस उनके प्यार की जरूरत थी।
"अच्छा माँ, पापा घर पर हैं?" एक पल की खामोशी के बाद अदिती ने जवाब दिया, "नहीं, वो बिज़नेस ट्रिप पर गए हैं। अगले हफ्ते लौटेंगे।" अद्वीर ने ‘हम्म’ कहा और बात पलट दी, "अच्छा, दादू, अगली बार मैं घर आऊँगा तो क्या खिलाओगे?" "तेरे लिए आलू के परांठे, और तेरी माँ के लिए गाजर का हलवा!" अद्वीर खिलखिलाकर हँस पड़ा। "अच्छा माँ, दादू, मैं थोड़ी देर में फिर कॉल करूंगा, प्लीज सोना मत!" "ठीक है बच्चू, लेकिन जल्दी करना!" "पक्का!" फोन रखते ही अद्वीर का मन हल्का हो गया। स्टारडम की चकाचौंध भले ही अकेली थी, लेकिन माँ और दादू के प्यार में वही सुकून था, जो उसे कहीं और नहीं मिलता था।
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अवि ✍️
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