रात के सन्नाटे में घड़ी की टिक-टिक गूंज रही थी। महल के अंदर सब सो चुके थे, लेकिन अद्वीर की आंखों से नींद कोसों दूर थी। न चाहते हुए भी उसका ध्यान बार-बार उस खिड़की की ओर जा रहा था, जो उसकी अलमारी के पीछे छिपी थी। "फिर से सपनों में बहने की जरूरत नहीं है…" उसने खुद से कहा, लेकिन मन नहीं माना। वह धीरे-धीरे उठा और अलमारी के पीछे हाथ फेरते हुए उस खिड़की को खोला। ठंडी हवा के झोंके ने उसके चेहरे को हल्का छुआ, और उसकी आंखें धीरे-धीरे उस दृश्य पर ठहर गईं। वह वही जगह थी—1975! इस बार बारिश नहीं हो रही थी, लेकिन चांदनी बहुत तेज़ थी। सामने वाले घर की छत पर एक लड़की थी—वही लड़की, जिसने कल रात बारिश में नृत्य किया था। इस बार वह अकेली नहीं थी। वह एक छोटे से बच्चे के साथ खेल रही थी। बच्चा लगभग चार-पाँच साल का होगा, गोरा-चिट्टा, घुँघराले बालों वाला। वह खिलखिला रहा था, और लड़की उसके पीछे भाग रही थी। अद्वीर ने गौर किया कि लड़की ने आज हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था। उसके लंबे बाल एक पट्टी से बंधे हुए थे, और उसकी हंसी पूरे माहौल में एक अलग सी मिठास घोल रही थी। तभी अचानक बच्चा दौड़ते-दौड़ते रुका और अपनी तोतली आवाज़ में बोला— "अब नहीं करूँगा, वेदी!" अद्वीर की सांस अटक गई। "वेदी…" दादू की बात उसे तुरंत याद आ गई—वेदाही सिंह! वह चौंककर खिड़की से और झुक गया। क्या यह वही लड़की थी, जिसके बारे में दादू ने बताया था? लेकिन… यह कैसे संभव था? उसने अपनी आंखें जोर से बंद कीं और फिर खोलीं। नज़ारा अभी भी वैसा ही था। लड़की, बच्चा, उनकी खिलखिलाहट—सब कुछ असली था। अद्वीर का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। यह कोई सपना नहीं था। यह हकीकत थी। पर सवाल यह था— क्या वह देख रहा था, या फिर किसी और समय का हिस्सा बन रहा था?
His unwanted mishti doi
Both are substitutes on behalf of their siblings......but feel deeper with each other...........how....when.....why....to know the reason just read this amazing story "his unwanted mishti doi".....



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